।। जय गुरूदेव।।
गुरूचाण्डाल भंग योग
वर्तमान समय में कालसर्प दोष तथा दूसरा गुरूचाण्डाल दोष आम व्यक्ति भी जानने लग गया है जातक ज्यौतिषी से ये ही प्रश्न करता है कि मेरी कुण्डली में कालसर्प अथवा गुरूचाण्डाल दोष है उसके उपाय स्वरूप मुझे क्या करना चाहिए ।
ये नहीं पुछेगा कि मेरी कुण्डली में ये दोष है या नहीं । और है कि कितने प्रभावी है।
अर्थात गुरूचाण्डाल दोष भी शनी की साढे साती के समान काफी प्रसिद्ध हो गया है क्यूकि इसका नाम ही कुछ ऐसा है।
किसी भी जन्मांगचक्र में किसी भी भाव में राहू और बृहस्पति की युति हो जाए तो इसे सामान्यजन अथवा ज्यौतिषी भी प्रथमदृष्टया चाण्डाल दोष ही कहेगा। प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या गुरूचाण्डाल एक मात्र युति से हम पूरी कुण्डली का सार निकाल सकते है -- नहीं कदाचित नहीं । क्यूकि एक ग्रह की स्थिती पूरी कुण्डली का भविष्य कथन का आधार नहीं हो सकती ।
1 क्या मेष लग्न की कुण्डली में चतुर्थभाव में गुरू राहू की युति पूर्ण गुरूचाण्डाल दोष के प्रभाव से प्रभावित होगी। जहा बृहस्पति भाग्येश होकर केन्द्र में उच्च का होगा।
2क्या सिंह लग्न में पंचमभाव में गुरू राहू की युति वैसा ही दुष्प्रभाव देगी जैसा वृषभ लग्न की कुण्डली में अष्टम में गुरू व राहू की युति का प्रभाव होगा या तुला लग्न की कुण्डली में छठे भाव में गुरूचाण्डाल दोष का प्रभाव होगा।
3 क्या हम धनु लग्न की कुण्डली में केन्द्र में केतू की गुरू से युति को भी उतना ही बुरा मानेंगे जो कि योगकारक होकर उच्च के केतू के साथ हो, जितना मकर लग्न की कुण्डली में लग्न में प्रथम भाव में गुरू राहू की युति का प्रभाव होगा। जो कि नीच का बृहस्पति होकर तथा द्वादश एवं तृतीय का स्वामी होकर जन्म लग्न में स्थित हो।
अर्थात हमें गुरूचाण्डाल दोष को हर परिस्थिती में बुरा ही फल देगा ऐसा नहीं माना जा सकता है।
क्यूकि राहुल द्रविड क्रिकेटर, माननीय मनमोहन सिंहजी, कृष्णकुमार जी पाठक, ऐरीन कमेरोन, ग्राहम डेवसन, जमनालालजी बजाज, रामकृष्ण डालमिया, आनन्द महिन्द्रा, पीटर ओटली इत्यादी कई सफल व्यक्तियों की जन्म कुण्डली में राहू व गुरू अथवा केतू व गुरू की युति उपस्थित है।
जिनमें अधिकतर कुण्डलियों में यह देखने को मिला है जैसे राहूल दृविड जी की कुण्डली में लग्नेश (मीनलग्न) अपनी मूल त्रिकोण राशी (धनुराशी) में स्थित है और राहू से युत है। जो कि योगकारक होकर पंचमहापुरूष योग बना रहा है।
माननीय मनमोहन सिंहजी की कुण्डली में भी धनुलग्न का लग्नेश भाग्यभाव में केतू से युत है ग्राहम डेवसन की कुण्डली में भी जो कि मीन लग्न की कुण्डली है और राहू से युत है।
अर्थात यह स्पष्ट होता है कि जैसा कि वृहद्पाराशर होरा शास्त्र के 42 सूत्रों में 21 वां जो सूत्र है कि ‘‘राहू और केतू
यदि त्रिकोण या केन्द्र में बैठे हो और उनका किसी केन्द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से सम्बन्ध हो तो वह योगकारक होता है।’’
यह स्थिती मेष लग्न में राहू गुरू नवम भाव में हो। तथा कर्क लग्न, सिंह लग्न, वृश्चिक लग्न, धनु लग्न, मीन लग्न में भी अगर राहू व गुरू की युति गुरू की राशी में केन्द्र में अथवा त्रिकोणभाव में किसी भी राशी पर युति होगी तो वह योगकारक युति ही मानी जाएगी गुरूचाण्डाल का दोष नहीं लगेगा।
इस परिस्थिती में गुरू चाण्डाल दोष भंग हो जाता है और बृहस्पति जो स्वयं बलवान ग्रह है राहू रूपी दैत्य की अपार शक्ति मिलने से वह और बली हो जाता है और शुभ स्थानों में इन दोनों ग्रहों की स्थिती अतिशुभफलदायी बन जाती है।
achary Narhari Prasad Rewtra
{Jyotish Martand}
गुरूचाण्डाल भंग योग
वर्तमान समय में कालसर्प दोष तथा दूसरा गुरूचाण्डाल दोष आम व्यक्ति भी जानने लग गया है जातक ज्यौतिषी से ये ही प्रश्न करता है कि मेरी कुण्डली में कालसर्प अथवा गुरूचाण्डाल दोष है उसके उपाय स्वरूप मुझे क्या करना चाहिए ।
ये नहीं पुछेगा कि मेरी कुण्डली में ये दोष है या नहीं । और है कि कितने प्रभावी है।
अर्थात गुरूचाण्डाल दोष भी शनी की साढे साती के समान काफी प्रसिद्ध हो गया है क्यूकि इसका नाम ही कुछ ऐसा है।
किसी भी जन्मांगचक्र में किसी भी भाव में राहू और बृहस्पति की युति हो जाए तो इसे सामान्यजन अथवा ज्यौतिषी भी प्रथमदृष्टया चाण्डाल दोष ही कहेगा। प्रश्न यह उपस्थित होता है कि क्या गुरूचाण्डाल एक मात्र युति से हम पूरी कुण्डली का सार निकाल सकते है -- नहीं कदाचित नहीं । क्यूकि एक ग्रह की स्थिती पूरी कुण्डली का भविष्य कथन का आधार नहीं हो सकती ।
1 क्या मेष लग्न की कुण्डली में चतुर्थभाव में गुरू राहू की युति पूर्ण गुरूचाण्डाल दोष के प्रभाव से प्रभावित होगी। जहा बृहस्पति भाग्येश होकर केन्द्र में उच्च का होगा।
2क्या सिंह लग्न में पंचमभाव में गुरू राहू की युति वैसा ही दुष्प्रभाव देगी जैसा वृषभ लग्न की कुण्डली में अष्टम में गुरू व राहू की युति का प्रभाव होगा या तुला लग्न की कुण्डली में छठे भाव में गुरूचाण्डाल दोष का प्रभाव होगा।
3 क्या हम धनु लग्न की कुण्डली में केन्द्र में केतू की गुरू से युति को भी उतना ही बुरा मानेंगे जो कि योगकारक होकर उच्च के केतू के साथ हो, जितना मकर लग्न की कुण्डली में लग्न में प्रथम भाव में गुरू राहू की युति का प्रभाव होगा। जो कि नीच का बृहस्पति होकर तथा द्वादश एवं तृतीय का स्वामी होकर जन्म लग्न में स्थित हो।
अर्थात हमें गुरूचाण्डाल दोष को हर परिस्थिती में बुरा ही फल देगा ऐसा नहीं माना जा सकता है।
क्यूकि राहुल द्रविड क्रिकेटर, माननीय मनमोहन सिंहजी, कृष्णकुमार जी पाठक, ऐरीन कमेरोन, ग्राहम डेवसन, जमनालालजी बजाज, रामकृष्ण डालमिया, आनन्द महिन्द्रा, पीटर ओटली इत्यादी कई सफल व्यक्तियों की जन्म कुण्डली में राहू व गुरू अथवा केतू व गुरू की युति उपस्थित है।
जिनमें अधिकतर कुण्डलियों में यह देखने को मिला है जैसे राहूल दृविड जी की कुण्डली में लग्नेश (मीनलग्न) अपनी मूल त्रिकोण राशी (धनुराशी) में स्थित है और राहू से युत है। जो कि योगकारक होकर पंचमहापुरूष योग बना रहा है।
माननीय मनमोहन सिंहजी की कुण्डली में भी धनुलग्न का लग्नेश भाग्यभाव में केतू से युत है ग्राहम डेवसन की कुण्डली में भी जो कि मीन लग्न की कुण्डली है और राहू से युत है।
अर्थात यह स्पष्ट होता है कि जैसा कि वृहद्पाराशर होरा शास्त्र के 42 सूत्रों में 21 वां जो सूत्र है कि ‘‘राहू और केतू
यदि त्रिकोण या केन्द्र में बैठे हो और उनका किसी केन्द्र अथवा त्रिकोणाधिपति से सम्बन्ध हो तो वह योगकारक होता है।’’
यह स्थिती मेष लग्न में राहू गुरू नवम भाव में हो। तथा कर्क लग्न, सिंह लग्न, वृश्चिक लग्न, धनु लग्न, मीन लग्न में भी अगर राहू व गुरू की युति गुरू की राशी में केन्द्र में अथवा त्रिकोणभाव में किसी भी राशी पर युति होगी तो वह योगकारक युति ही मानी जाएगी गुरूचाण्डाल का दोष नहीं लगेगा।
इस परिस्थिती में गुरू चाण्डाल दोष भंग हो जाता है और बृहस्पति जो स्वयं बलवान ग्रह है राहू रूपी दैत्य की अपार शक्ति मिलने से वह और बली हो जाता है और शुभ स्थानों में इन दोनों ग्रहों की स्थिती अतिशुभफलदायी बन जाती है।
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