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गुरू तथा बुध की युति

 जय गुरूदेव ।।

गुरू तथा बुध की युति

जब किसी की कुण्डली में गुरू तथा बुध की युति होती है। जो एक विशेष योग का निर्माण होता है भाग्य और बुद्धि का । यह समझना थोडा कठिन होगा की बुद्धि कर्म (बुध) तथा धन भाग्य (गुरू) की युति क्या फल प्रदान करेगी। 
गुरू बृहस्पति को देवताओं का गुरू कहा गया है और बुध गुरू की पत्नी तारा का पुत्र है। तथा बुध का पिता चन्द्रमा है। जिससे बृहस्पति तो बुध का अपना मानता है किन्तू बुध है वह बृहस्पति को अपना नहीं मानता । उसके मन में बृहस्पति के प्रति सम्मान नहीं है।

इसे हम ऐसे भी समझ सकते है कि ज्ञानवान (गुरू) बुद्धि का साथ देता है। किन्तू कईबार बुद्धि से किये हुए फैसले ज्ञान और आध्यात्म के विपरित ही होते है। बृहस्पति सदा ही शुभफल देने वाला कहा गया है किन्तू बुध को स्थिती के अनुसार फलदेने वाला कहा गया है। बुध को नपुंसक ग्रह भी गया जाता है जिसके साथ जिसकी राशी में बैठता है वैसा ही बन जाता है। तथा उसके अनुरूप फलदेने लगता है। किन्तू यहा एक बात स्पष्ट करना चाहुंगा कि अगर बुध अपने पिता चन्द्रमा के साथ बैठता है अथवा चन्द्रमा की राशी में बैठता है जो शुभफल कभी भी नहीं देता है।
चन्द्रमा को चंचल ग्रह नित्य नक्षत्र परिवर्तन करने वाला एवं तीव्रगति से राशी परिवर्तन करने वाला ग्रह साथ ही मन का स्वामी ग्रह होने के कारण अति प्रभावशाली शक्तिशाली तथा मानव जीवन एवं समस्त जीव जगत पर तुरन्त और प्रभावी प्रभाव देने वाला ग्रह है। जब चन्द्रमा की बुध से युति होती है, तो जातक की बुद्धि को चंचल कर देता है। मन में उद्विग्नता भर देता है। जिससे उसकी याददाश्त कमजोर एवं लागेों को पहचानने की कला नष्ट हो जाती है।
चन्द्रमा माता का कारण सुख का कारक है किन्तू बुध बुद्धि विज्ञान, गणित तथा बौद्धिक निर्णय एवं कर्मवादी ग्रह है। जिस कारण भी भावना और बुद्धि का तालमेल कभी नहीं बैठता इस कारण से भी बुध और चन्द्रमा की युति हमेशा अशुभ फलदायी ही रही है।
बुध याने मर्करी (पारा) तथा चन्द्रमा अर्थात दूध दूध और पारे के मिलन से जहर बनता है वैसे ही जिसकी जन्म कुण्डली में बुध व चन्द्रमा की युति दृष्टि सम्बन्ध, स्थान सम्बन्ध बनता है अैार बुध और चन्द्रमा बली हो तो जातक के शरीर पर सफेद दागे, स्कीन एलर्जी भी होने की पूर्ण सम्भावना रहती है।
हमेशा यह देखा गया है कि कोई व्यक्ति अच्छे व्यक्ति की संगती करे तो अच्छाईयाॅ कम ही ले पाता है, और बुरे लागों की संगती में बुराई जल्दी ग्रहण कर देते है, वैसा ही प्रभाव बुध और बृहस्पति तथा बुध और क्रूर ग्रहों की संगती का फल समझना चाहिए। अच्छे ग्रहों से युति करने वाला बुध सदा अच्छा ही फल दे आवश्यक नहीं किन्तू पाप ग्रह अर्थात अशुभ ग्रहों अथवा नीच ग्रहों की संगती में बुध अवश्य बुरा फल प्रदान करता है।

बुध हमेशा सूर्य के आसपास ही मंडराता रहता है, एक राशी आगे या एक राशी पीछे अथवा सूर्य से युत । सूर्य से युत अर्थात सूर्य अधिक नजदीक होेने पर बुध प्रायः अस्त हो जाता है बुध से आने वाली रश्मियाॅ अपना अस्तित्व ही खो देती है। पुनः सूर्य से दूर होने पर ही बुध की किरणे पृथ्वी पर पहुचपाती है। बुध की रश्मियों से हीन जातक के शरीर में बुध से सम्बन्धित कारक तत्वों की कमी रहती है जैसे - बुध वाणी का कारक होने के कारण वाणी अस्पष्ट होगी। जातक अधिक बुद्धिमान नहीं होगा, चर्म रोग होने की पूर्ण सम्भावना तथा चमडी अधिक संवेदनशील होगी। कुछ उदासी रहती है। जीवन में गति की कमी, व्यापार, शेयर मार्केट, प्रकाशन, तर्कशक्ति, गणित, एकाउन्टेंस, ज्ञान, नृत्य, नाटक रजोगुण की कमी अर्थात हीन भावना से ग्रसित होगा।

सारांशतः बुध और बृहस्पति की युति हम ज्यादा उचित या बेहतर नहीं कह सकते है। अगर किसी एक ग्रह में अधिक बल है जैसे बृहस्पति अधिक बली अंशों, स्थितियों में है और बुध कमजोर है। तो बृहस्पति के कारक तत्वों में होने वाली वृद्धि बृहस्पति की दशा में होगा तथा बुध की दशा ज्यादा लाभदायक नहीं होगी अगर बुध केन्द्र त्रिकोण का स्वामी नहीं है। ऐसे जातको को अपने त्रिकोण के स्वामी चाहे वह बुध हो अथवा बृहस्पति का रत्न अवश्य धारण करना चाहिए। एवं बुध अथवा बृहस्पति की कलर थरेपी का प्रयोग करना चाहिए, एवं सम्बन्धित ग्रह की पूजा अनुष्ठान करवाकर , विपरित ग्रह की वस्तुओं का दान करना लाभकारी सिद्ध होता है।

पण्डित नरहरी प्रसाद द्विवेदी 
(ज्यौतिष रत्न)
वाट्सअप 9950121286
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1 comments:

  1. agar guru or budh ki yuti tula lagan ki kundli kae phanchav bhav mae hogi tho ussae kaya ucch siksha prapt hogi

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